SFIO करेगा Gensol मामले की जांच! – sfio will investigate gensol case


सरकार जेनसोल इंजीनियरिंग मामले में गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) से जांच शुरू कराने पर विचार कर रही है। सूत्रों ने कहा कि एसएफआईओ कंपनी के प्रवर्तकों के खिलाफ भी जांच कर सकता है। सूत्र ने कहा कि एसएफआईओ से जांच कराने के विकल्प पर विचार किया जा रहा है। जल्द ही इस पर कोई निर्णय ले लिया जाएगा।‘

इस बीच एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने बताया कि कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय अपने महानिदेशक और कंपनी पंजीयक कार्यालय के जरिये जेनसोल इंजीनियरिंग में रकम की हेराफेरी की पड़ताल कर रही है। अधिकारी ने कहा कि महानिदेशक और कंपनी पंजीयक कार्यालय की रिपोर्ट आने के बाद मंत्रालय आगे कदम उठाएगा।

पिछले सप्ताह भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कहा था कि जेनसोल इंजीनियरिंग में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी में भारी गिरावट स्वाभाविक रूप से नहीं आई थी बल्कि सोची-समझी साजिश के तहत इसमें कमी की गई थी। सेबी ने कहा कि प्रवर्तकों ने हिस्सेदारी कम करने के लिए फर्जी खुलासों, अवैध लेनदेन और रकम की हेराफेरी का सहारा लिया था जिससे उनकी हिस्सेदारी लगभग नगण्य रह गई थी। कंपनी कानून के विशेषज्ञों ने कहा कि इस प्रकरण के बाद यह बहस तेज हो सकती है कि अधिक जोखिम वाले उद्यमों में अनुपालन जांच के तौर पर अनिवार्य बोर्ड मूल्यांकन और प्रदर्शन आदि की समीक्षा होनी चाहिए।

के एस लीगल ऐंड एसोसिएट्स में मैनेजिंग पार्टनर सोनम चंदवानी ने कहा, ‘इस घटनाक्रम के बाद सत्यम मामले में निर्धारित सिद्धांत को बल मिलता है कि ऑडिटर की जिम्मेदारी केवल रिकॉर्ड रखने तक ही सीमित नहीं है बल्कि कंपनी अधिनियम की धारा 143 के तहत फर्जीवाड़े एवं अनियमितताओं की खबर देना भी उनकी जिम्मेदारी बनती है।‘ पिछले कुछ समय से कई स्टार्टअप इकाइयां गलत कारणों से चर्चा में रही हैं। मूल्यांकन हासिल करने की ललक, निवेशकों की तरफ से दबाव और संस्थापकों की तरफ से होने वाले अनुचित व्यवहार इनके लिए जिम्मेदार रहे हैं। चंदवानी ने कहा, ‘बड़ी सोच के नाम पर स्टार्टअप संस्थापकों को परखने के बजाय उनका महिमामंडन अधिक किया जाता है। बोर्ड का काम जश्न मनाना नहीं बल्कि नजर रखना है।’

कानून विशेषज्ञों का कहना है कि इस पूरे मामले में ऑडिटर की तरफ से लापरवाही बरती गई है। उन्होंने कहा कि फर्जी पत्रों और जेनसोल और ब्लूस्मार्ट के बीच रकम के लेनदेन में अनियमितता पर नजर रखने में ऑडिटर की तरफ से बरती गई लापरवाही कंपनी अधिनियम की धारा 132 के अंतर्गत पेशेवर व्यवहार में चूक का मामला बनता है। उन्होंने कहा कि इससे नैशनल फाइनैंसिंग रिपोर्टिंग अथ़ॉरिटी के अधिकार क्षेत्र में भी मामला चला जाता है। इनगवर्न रिसर्च के श्रीराम सुब्रमण्यम कहते हैं, ‘इस मामले से कई महीनों पहले जून 2024 में सेबी के पास व्हिसलब्लोर ने शिकायत की थी। मगर लगता है कि रेटिंग एजेंसियों की तरफ से मामला उठाने के बाद ही सेबी हरकत में आया है।’

 


First Published – April 20, 2025 | 10:31 PM IST



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